आस्था और विश्वास कि ऐसी की तैसी: रामलीला

RAMLILA


फिल्म देखने जाने से पहले अब तो फिल्म का प्रोमो और पोस्टर देखकर जाने में ही समझदारी है। टॉकीज जाकर ठगा महशुस करने से अच्छा तो अखबारों और पत्रिकाओं में अच्छी तरह पड़ताल करने के बाद ही टिकट की लाइन में लगे वरना होता कुछ है दिखाते कुछ और है।
राम-लीला संजयलीला भंसाली कि फिल्म रामलीला को प्रदर्शित होने से रोकने के दायर लिए याचिका पर सुनवाई न होने कारण। और तताम विरोधों के अब फिल्म अंतत: प्रदर्शित हो ही रहा है। फिल्म का नाम सुनने से ऐसा लगाता है कि यह फिल्म एक धार्मिक और भक्ति-रसमय होगा। किन्तु हकीकत कुछ और है इसमें धर्म और भक्ति का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। ये पहली बार नहीं हुआ है जब इस तरह से लोगों कि धार्मिक भावनाओं के साथ कई बार खिलवाड़ हुआ। फिल्म मेकर से लेकर नामी कलाकार भी नामों के आड़ में धंधा करते है। उनके लिए लोगों की भावना और विश्वास कोई माइने नहीं रखता है उन्हे तो बस किसी न किसी बहाने दर्शकों को सिनेमाघरों आकर्षित करना है। फिल्म के नाम के साथ ही गानों में भी देवी-देवताओं और महापुरूषों की महिमा का भरपूर उपयोग किया जाता है। इतने सारे विद्वान और सुलझे हुए व्यक्तियों द्वारा इस तरह से करतुत करना नादानी नहीं बल्कि सोची समझी गुस्ताखी है। गुस्ताखी की सजा तो मिलनी चाहिए, सिर्फ प्रदर्शन में रोक लगाने से समस्या का समाधान नहीं होगा। कुछ ऐसा फैसला निकलकर सामने आए कि लोग इस तरह नामों का उपयोग करने की हिम्मत न करें।
स्टार कॉस्ट फिल्म रामलीला में रणवीर और दीपिका की जोड़ी को लोग तो देखने के लिए टॉकीज तक आते इससे पहले ही रामलीला से पर्दा उठ गया। राम और लीला कि प्रेम कहानी को रामलीला फिल्म का नाम देने से भले संजयलीला भंसाली को कोई फर्क नहीं पड़ता पर जो लोग राम नाम पर भरोसा करते है उन्हे तकलीफ हो रही है। धर्म और आस्था के भारत भूमि में भी भगवान पैसा कमाने का माध्यम बन चुका है। फिल्म सेंशर बोर्ड के होते हुए भी इस तरह के फिल्म सिनेमाघरों तक आते है। उंगली तो सेंसर बोर्ड पर भी उठनी चाहिए। आखिर वे ऐसे नामों को परमिट करते ही क्यों है जो विवादित हो, जो संप्रदायिक हो। फिल्म जनता को जगाने के लिए, लोगों तक संदेश पहुंचाने का एक अच्छा माध्यम है किन्तु अगर उस माध्यम का उपयोग लोग अपने-अपने तरीके से करने लगे है। निज स्वार्थ के लिए कुछ भी परोसा जा रहा है। प्रतियोगिता और माया नगरी के चकाचौंध से दर्शकों के साथ-साथ कलाकार भी अभिनय नहीं सिर्फ आदा और लगटके झटके के आड़ में लाखों दिलों में अपनी जगह पाने कि चाहत से कुछ भी करने को आतुर है। हो भी क्यो न मयानगरी में जो दिखता है वो बिकता है। जनाब जो दिखता है वो बिकता है तो माल भी चोखा रखो, कवर में कुछ और अंदर माल कुछ और, ये तो गलत है।---------जयंत साहू, डूण्डा, रायपुर छ.ग./ 07746053304

अंधभक्तों को अरोप पत्र में भी साजिश

सादे पोषाक में रहने वाले संत के रंगीन मिजाजी से आज दुनिया वाकिफ हो चुकी है एक संत के कारण पूरे संत बिरादरी पर अविश्वास करना उचित नहीं है, इस घटना ने लोगों के भावनाओं को चोट जरूर पहुंचा है। कहीं न कहीं उनके मन में हर गेंहुवा वस्त्र के लिए अब नजरे टेढ़ी जरूर हुई है...    
दुनिया को उपदेश देने वाले आसाराम ने अपने आस-पास अंधभक्तों की इतनी फौज तैयार कर रखी है कि वे तो अरोप पत्र को साजिश बता रहे है। संत होकर अब कौन गुंडागर्दी कर रहा है ये साफ हो गया। पहले तो यह कहा जा रहा था कि आरोप ही बेबुनियाद है। अब पुलिस के द्वारा आरोप पत्र दाखिल करने बाद भी उनके भक्त बापू-बापू के नाम की माला जप रहे है। न जाने उनके बापू ने क्या घुट्टी पिलाई है, उन पर लगा हर आरोप एक साजिश लग रही है।
    आसाराम के उपर आश्रम के लिए जमीन अधिग्रहण से लेकर बच्चों की बलि और बलात्कार जैसे संगिन आरोप भी लगे है जो परत दर परत आइने की तरह साफ होता जा रहा है। आसाराम की हकीकत आज लोगों के सामने है। एक संत जो धर्म और गुरू की महानता को कलंगित कर चुका है, एक आम आदमी को तो उसे संत कहने में भी शर्म आ रही है किन्तु उनके भक्तों की आखें कब खुलेगी, वे ही जाने। एक संत होकर आरोपों का सामने करने के बजाए कानून से भागे और पकड़ के बाद अपने गुंडों के द्वारा पुलिस और मीडिया कर्मीयों पर दबांगाई दिखाये। ये किस बिरादरी के संत है, हर शहर में आलिशन कुटिया और सौकड़ों एकड़ का आश्रम वह भी बेजा कब्जा।
    पाप का घड़ा फुटने के बाद एक के बाद एक काले कारनामों से पर्दा उठता जा रहा है। राजस्थान पुलिस द्वारा जो आरोप पत्र दाखिल किया गया है उससे तो यही अंदेशा है कि अब आसाराम ताउम्र सलाखों के पीछे ही रहेंगे। नाबालिक से यौन शोषण के आरोप में पुलिस के हत्थे चढ़े आसाराम और उनके चार साहयोगियों के खिलाफ जोधपुर कोर्ट में 1012 पन्नों की चार्जशीट दाखिल कर दी है। आरोप पत्र में आसाराम पर बलात्कार, यौन उत्पीड़न, बंधक बनाना, धमकी देना समेत जेजे और पॉस्को ऐक्ट के तहत कई सख्त धाराएं लगाई गई हैं। अगर ये आरोप साबित हो जाते हैं तो उन्हें 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। यह भी कहा गया है कि राजस्थान पुलिस ने करीब 140 गवाहों से पूछताछ की है और उनके बयानों के आधार पर यह आरोप पत्र तैयार कर बुधवार उसे जोधपुर कोर्ट में पेश किया गया। दुनिया में सत का संदेश देने वाले संत ने हालांकि कोर्ट में अपना जुर्म कबूला नहीं है।
    इतने आरोप लगने के बाद भी अपने को बेदाग बताने वाले संत के उपर धारा 376 (2): बलात्कार, जिसके तहत 10 साल से उम्रकैद तक की सजा। धारा 370: बंधक बनाना, 7 साल तक की सजा। धारा 506: धमकाना, 7 साल तक की सजा और जुर्माना। 26 जेजे ऐक्ट: नाबालिग का शोषण, 3 साल तक की सजा। 5/6 पॉस्को ऐक्ट: 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। ऐसा भी नहीं है कि आसाराम के भक्तों में सभी अनपढ़ है। कई कानून के जानकार है और वही लोग उनके झुठ को सच्च और पीड़िता को झूठा ऐसा भी नहीं है कि आसाराम के भक्तों में सभी अनपढ़ है कई कानून के जानकार है, वही लोग तो उनके झुठ को सच्च और पीड़िता को झूठी साबित करने में आमद है। उनकी माने तो जो भी व्यक्ति उन पर आरोप लगा रहे है या उनके खिलाफ गवाही दे रहे है वो सभी आश्रम ले निकाले गये लोग है। आखिर संत के दरबार से लोग क्यों निकाले जाते है। दुनिया को सात्विक जीवन की सलाह और दीक्षा देने वाला खुद सारे सुखों का भोग करे और चेले बेचारे उनकी बातों में आकर अपने सुखों के साथ-साथ घर परिवार का त्याग कर उनके शरण में चले जाते है। कई उनके भक्तो ं को तो यह भी पता नहीं था की आसाराम (बाल-बच्चे)परिवार वाला आदमी है। सादे पोषाक में रहने वाले संत के रंगीन मिजाजी से आज दुनिया वाकिफ हो चुकी है। एक संत के कारण पूरे संत बिरादरी पर अविश्वास करना उचित नहीं है। इस घटना ने लोगों के भावनाओं को चोट जरूर पहुंचा है। कहीं न कहीं उनके मन में हर गेंहुवा वस्त्र के लिए अब नजरे टेढ़ी जरूर हुई है। साधुसंतों पर आस्था जरूर हो, बिन गुरू के ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। किन्तु ऐसे संतों से सीख लेने की जरूरत हम सब को है अब बंद आखों से ईश्वर का नाम जपने के बजाए अब आखें खोल कर भगवान का दीदार करने में ही सबकी भलाई।

मंत्रियों की सम्पत्ति ब्योरें में कितनी सचाई!

चुनाव के दौरान नामांकन दाखिल करते वक्त चुनाव आयोग के सामने प्रत्याशी अपनी-अपनी संपत्ति का ब्योरा देते हैं। कोई करोड़पति तो कोई लखपति और कई अरबपति होकर भी हजारी है, शपथपत्र के अनुसार। जो पहिली बार भाग्य आजमा रहे उनकी संपत्ति में हेरफेर तो समझ आता है पर जो जीत का स्वाद चख चुके है और विगत कई सालों तक मंत्री पद पर सुशोभित रहे है उनकी भी संपत्ति ज्यों कि त्यों है!

              क्या वे अपने कार्यकाल में कुछ भी जमा पूंजी नहीं बना पाये है? ऐसा तो संभव ही नहीं है। कालेधन और काली कमाई की बाते छोड़कर भी हम ऑकलन लगाये तो भी पांच साल में दूगुना हो सकता है लेकिन मंत्री महोदय तो दस साल तक मालदार पद में रहने के बाद भी कुछ धन जमा नहीं होने की बात अपने शपथपत्र में कर चुके है। अगर उन तथ्यों में वास्तविक्ता है तो मंत्री महोदय देश के लिए अनुशर्णीय है, और यदि सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं होने की बात कर रहे है तो जनता अंधी और बहरी नहीं है। जनता सब देख और सुन रही है किन्तु चुनाव आयोग को देखना और समझना होगा की मात्र शपथपत्र में हस्ताक्षर करके अपनी संपत्ति का ब्योरा दे रहै है उनमें कितनी सच्चाई। दिये गये संपत्तियों के ब्योरंे को देखा जाए तो हकीकत कुछ और ही होती है। एक तरफ तो सरकार परिवार में पति-पत्नि, मां-बाप , बेटा-बेटी इनको भी परिवार का हिस्सा मानती है। वहीं दूसरी तरफ नामांकन दाखिले में प्रत्याशी केवल अपने ही नाम के संपत्ति का ब्योरा प्रस्तुत करता है।
    क्या पद में रहते हुए वे अपनों को लाभ नहीं पहुंचाया होगा, अपने रिस्तेदारों के नाम पर या अन्य किसी के नाम पर कोई कितनों ही धन जमा कर सकता है? वर्तमान में एक मंत्री ने अपने शपथ में लिखा है उनके पास कोई वाहन ही नहीं। गौर करने वाली बात है हर वक्त एयर कंडिशन में रहने वाले, हाईप्रोफाईल सोसाइटी के घर पर कैसे कोई वाहन नहीं है? यदि उनकी वास्तविक कमाई को देखा को जाए तो पांच साल में वे एक पाई भी अपने जेब से खर्च नहीं करते है सारा सामान तो शासन उपलब्ध करता है। घरेलु सामान से लेकर वाहन और फोन का बिल भी मुफ्त का। ऐसे में उनका पगार तो पूरा जमा हो जाता है, भत्ता और उपरी कमाई सो अलग। अब नामांकन के समय में यदि वे कुछ छिपाते है तो साफ तौर पर लोगों को बेवकुफ बनाने वाला काम है। इस ओर चुनाव आयोग को विशेष रूप से नियमों में कड़ाई करनी होगी। प्रत्याशियों की संपत्ति का ब्योरा प्रस्तुत करने के उपरांत उस शपथपत्र के संपत्ति और अन्य जानकारी की बारिकी से परीक्षण होना चाहिए, असत्य पाये जाने पर दंड का भी प्रावधान हो।

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